Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, November 6, 2016

हर रात के बाद...
When the night passes

बहती भीनी ठण्डी हवा,
जब रात के तारों संग
सरकते हुए मेरे तकिये के नीचे
आती है, तो यूँ लगता है
कि प्रकृति की शुचिता
मानवीकृत होकर
मुझे मेरे अधूरे सपनों से
मिला देने चाहती है।
सुबह का ये नीला आकाश,
कलरव करते पंछी,
झूमते उमड़ते वृक्ष; मुझे अपने रंगों में
भिगो देने को आतुर हैं
कि मेरी अस्मिता
मुझमें आत्मसात होकर
मुझे मेरे खोये अस्तित्व से
रूबरू कर देना चाहती है।

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.wall321.com
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© Snehil Srivastava

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